भारत, गुरुपूर्णिमा और “विश्वगुरु”

एक बार फिर राजा विक्रम ने वेताल को अपने कंधे पर उठाया और मंदिर की तरफ चल पड़ा. हँसते हुए वेताल ने अपना नया प्रश्न पुछा,”राजा तू बड़ा जिद्दी है. हार नहीं मानेगा। अच्छा, अब मेरा एक और प्रश्न सुन। आज आषाढ़ पूर्णिमा है, और गुरु पूर्णिमा का पावन दिवस है. इस वर्ष स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण की १२५वी वर्षगाँठ भी है.स्वामीजी ने अपने भाषणों में साफ़ कहा है की भारत की नियति विश्वगुरु बनकर संसार को सही मार्ग दिखाना है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी उनके कई मंत्रियों ने इस का अपने भाषणों में अनेक बार उल्लेख किया है. आज के आधुनिक और तेजी से चलने वाली दुनिया में स्वामीजी की इस भविष्यवाणी का क्या अर्थ लगाया जाए और क्या हम सही मायने में कभी विश्वगुरु के रूप में अपनी जगह बना पाएंगे? अगर जानते हुए भी तूने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो तेरे सर के हज़ार टुकड़े हो जाएंगे ” राजा विक्रम ने हँसते हुए अपना उत्तर दिआ , “वेताल तूने बड़े शुभ मुहूर्त पर बहुत अच्छा प्रश्न किया है। गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व आध्यात्मिक मार्ग के साधकों के लिए है और इस दिन गुरु कृपा विशेष होती है. आध्यात्मिक दृष्टि देखें तो भारत आज भी विश्व गुरु है। सगुण साकार ईश्वर हो या निर्गुण निराकार ब्रह्म हो, ईश्वर प्राप्ति के मार्ग का जितना गहन ज्ञान और प्राप्ति के साधन भारत के ऋषि, मुनि और संतों ने सिखाये हैं, और जिस गहराई से इस विषय को समझा है,इसकी तुलना संसार के किसी पंथ या धर्म से नहीं हो सकती। लेकिन अगर आध्यात्मिक और आधिभौतिक, दोनों दृष्टि से देखें तो इस प्रश्न का उत्तर अलग है। शंकराचार्य के “ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या” वाक्य का हमने सही अर्थ नहीं समझा. हम आध्यात्मिक प्रगति में इतना खो गए की आधिभौतिक मार्ग में और देशों की तुलना में काफी पीछे हो गए. इसका मुख्य कारण ये था की हमने भगवन श्रीकृष्ण को भगवान् समझा और ये भूल गए की वह सही रूप में विश्व गुरु थे.आज हम कृष्ण के बताये मार्ग पर चलते तो आध्यात्मिक आधिभौतिक दोनों रास्तों में अपनी श्रेष्ठता बनाये रख सकते थे। शिल्पकला, गणित,आयुर्वेद, चिकित्सा, स्थापत्यशास्त्र, राज्यव्यवस्था,धर्म, हर क्षेत्र में पूर्ण ज्ञान होने पर भी अपने बुद्धिभेद के कारण हम रास्ता खो गए.हमने अपना क्षात्र तेज भी खोया और वैश्य वृत्ति में भी ब्रिटैन आदि राज्यों के सामने पीछे रह गए। इसका मुख्य कारण आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति की तरफ विशेष झुकाव हुआ और हमआधिभौतिक मार्ग पर उदासीन हो गए.योगिराज श्रीकृष्ण न केवल पूर्णावतार थे,लेकिन सच्चे गुरु भी थे. उन्होंने अर्जुन को आत्मज्ञान कराया , नरकासुर से लड़ कर पीड़ित स्त्रियों को मुक्त कराया, द्वारका नगरी बसाई, महाभारत के युद्ध में भीषण संहार करा के सत्य की विजय का मार्ग दिखाया, इसी तरह राजा जनक भी मिथिला के राजा थे लेकिन शुक मुनि अध्यात्म विद्या का ज्ञान उन्होंने ही दिया था। सिखों के गुरु गोविन्द सिंह आध्यात्मिक गुरु भी थे और उन्होंने मुग़लों से लड़ाई में अपनी सेना उतार कर अपना धर्म निभाया। आज भारत सही मायने में विश्वगुरु तभी बनेगा जब हम श्रीकृष्ण, जनक और श्री गुरु गोविंदसिंह की तरह आधिभौतिक और आध्यात्मिक रास्तों पर बराबर गति से प्रगति करने का समन्वय बना पाएं. जब तक हम ये नहीं कर पाएंगे, हम सच्चे मायने में विश्व गुरु बनाने का स्वप्न पूर्ण नहीं कर पाएंगे “राजा विक्रम का उत्तर सुन के वेताल हंसा और बोला , “राजा , तूने कठिन प्रश्न का उत्तर तो सही दिया , लेकिन तू बोला और इसलिए अब मैं चला।”