भाजपा यशस्वी क्यों है ?

राजा विक्रमादित्य के सही उत्तर को सुनकर वेताल फिर से उड़ कर पेड़ पे लटक गया. हर बार की तरह राजा ने भी हार नहीं मानी, और उसे पेड़ से उतार कर अपने कन्धों पर लाद कर मंदिर की तरफ चल पड़ा. वेताल ने हँसते हुए अपना फिर एक प्रश्न पूछा. “राजा, तूने मतदान की अनिवार्यता का तो बड़ा अच्छा उत्तर दिया. अब मैं मतदान और चुनावों को लेकर दूसरा प्रश्न पूछता हूँ. अभी हाल में हुए ५ राज्य चुनावों के परिणाम आ चुके हैं, और भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इनकी सरकार निश्चित है, और गोवा और मणिपुर में बनने की सम्भावना है. कांग्रेस तेजी से सिमटती जा रही है एक पक्ष जो भारत की राजनीति में ८०% से ज्यादा समय तक केंद्र में और राज्य सरकारों में सत्ता में रहा है , अब केंद्र में तो सत्ता खो चूका है और एक के बाद एक राज्य अपने हाथों से खो रहा है. भाजपा सत्ता पक्ष के रूप में तेजी से उभर कर आ रही है. कोई कहता है, इसका सारा श्रेय नरेंद्र मोदी का है, कोई कहता है ये अमित शाह की चाणक्य नीति का फल है, किसी के अनुसार ये भाजपा की जीत कम और कांग्रेस की कमजोरी की वजह ज्यादा है, कोई कहता है ये संघ की साम्प्रदायिकता का फल है जो हानिकारक साबित होगा, कोई कहता है ये छोटे पक्षों में बढ़ते परिवारवाद के कमजोर होने की वजह है. भाजपा की इस बढ़ती सफलता का मुख्य कारण क्या है ? इस प्रश्न का सही उत्तर जानते हुए भी नहीं देगा तो तेरे सर के हजारों टुकड़े हो जाएंगे। “राजा ने कुछ देर सोचा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. “सुन वेताल, इस प्रश्न के उत्तर का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति और समुदाय के कर्मों और और उन कर्मों के कर्मफल से है.
तूने देखा होगा की हमारे ग्रंथों में अनेक उदहारण है की ब्राम्हण, राजा, स्त्रियां, बच्चे, यहां तक की कुम्भकरण और भस्मासुर जैसे राक्षस भी जब कठिन तपस्या करते थे तो ईश्वर उनकी तपस्या का फल देने को बाध्य हो जाते थे. ये प्रकृति का नियम है जो झुठलाया नहीं जा सकता. जैसे हर मनुष्य के कर्म का फल देने को नियति बाध्य है, वैसे ही एक विशेष समूह के निरंतर और संचित कर्मों का फल मिलना भी निश्चित है.

भाजपा की जड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है जो ९१ सालों से अविरत राष्ट्रसेवा में रत है. संघ के लाखों कार्यकर्ता निस्वार्थ भाव से राष्ट्रवाद की निष्ठा से संघ और उसकी अनेक संघटनाओं के माध्यम से देशसेवा में लगे हैं. संघ की स्थापना १९२६ में हुई और जनसंघ ( जो संघ की राजनैतिक पहल थी) की स्थापना १९५१ में हुई. संपूर्ण बहुमत से अपनी सरकार आने में भाजपा को ६३ वर्ष लग गए और संघ को ८८ वर्ष. वैसे देखें तो ये लंबा समय लगता है लेकिन अगर कांग्रेस का उदहारण लें तो कांग्रेस की स्थापना १८८५ में हुई. स्वतंत्रता पा कर संपूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाने में कांग्रेस को भी ६२ वर्ष लग गए. १८८५ से ले कर १९४७ तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जो निस्वार्थ भाव से, देशसेवा के भाव से काम किया और जनाधार बनाया उसका उनको कर्मफल १९४७ में मिला. अगले ६० -६५ सालों में कांग्रेस की पूरी नीति येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने में,लेन देन की राजनीति करने में, और लोगों को बहला कर सत्ता बनाये रखने की रही है. अगर किसी धनवान सेठ का लड़का उसके काम को बढ़ाने की कोशिश कम करेगा और ज्यादा समय जो संचित धन है उसको खर्च करने में लगाएगा तो वह धन आज न कल ख़तम हो जाएगा। इसमें आश्चर्य कोई नहीं है. पूर्वजों के नाम पे वोट मांग कर उनकी सफलता को नींव बनाकर ये अपना भवन बनाना चाहते थे. पूर्वजों
की सफलता को नींव तो बना सकते हैं, लेकिन उसपर भवन बनाने के लिए अपने कर्म करने पड़ते हैं जहाँ ये कमजोर पड गए. कांग्रेस और बाकी छोटे दलों की सफलता केवल निजी और पारिवारिक स्वार्थ पे आधारित रही है और उन दलों के जो प्रयास रहे हैं वो भी उस स्वार्थ से प्रेरित रहे हैं. कर्म सिद्धांत के अनुसार कर्मों का फल अवश्यम्भावी है. इसमें देर हो सकती है, और इसका स्वरुप बदल सकता है, लेकिन फल अवश्यम्भावी है. उनकी नीति, नीयत और निरंतर प्रयासों का परिणाम है की मोदी और शाह के नेतृत्व में इनको ये सफलता मिली है. कांग्रेस और अन्य दलों से जो गलती हुई वो सब के सामने है. इनकी नीतियां और नीयत जनहित में या देशहित में नहीं , केवल स्वार्थ हित में रही. अगर भाजपा अपनी नीति और नीयत पर कायम रहती है, और निरंतर प्रयास जारी ,रखती है, तो अगले ५० साल तक इनका भविष्य उज्जवल है।

मोदी और अमित शाह को संघ और भाजपा से अलग कर के नहीं देखा जा सकता. संघ के लाखों कार्यकर्ताओं के कर्मों का फल है की मोदी और शाह जैसे शीर्ष नेतृत्व की रचना हुई. ये दोनों आसमान से नहीं उतरे हैं. संघ के संस्कारों और ढांचें में ही ये आगे बने और बढे हैं. अगर मोदी और शाह जाते भी हैं, तो इस कर्मफल के रूप में उनसे बढ़कर नेतृत्व आगे आ सकता है। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन को अपने परिवार और गुरुजनों से युद्ध करने में संभ्रम हुआ, तब श्रीक़ृष्ण ने विराट स्वरुप दिखाकर उसका संभ्रम दूर किया. श्रीकृष्ण ने कहा की कौरव अपने कर्मफल से पहले ही मर चुके हैं. अर्जुन तो केवल निमित्त है जो उनका संहार का कारण बनेगा. इसी प्रकार, मोदी और शाह वो निमित्त हैं जिनके द्वारा संघ और भाजपा की दशको की तपस्या का फल उनको और भारत को मिल रहा है. बेताल राजा का उत्तर सुन कर खुश हुआ, हंसा और बोला, राजा तू बहुत ज्ञानी है और समझदार है। तूने उत्तर तो एकदम ठीक दिया लेकिन तू बोला, इसलिए में चला और उड़के फिर वापस उसी पेड़ पर लटक गया!