विक्रम और वेताल – अनिवार्य मतदान एक कर्त्तव्य है या नहीं ?
विक्रम और वेताल की कहानियां हम सबने सुनी हैं. इस कथा के अनुसार राजा विक्रमादित्य एक तांत्रिक की इच्छा पूर्ण करने के लिए एक पेड़ पे लटके हुए वेताल को पकड़ने की जिम्मेदारी लेते हैं. वेताल राजा के सामने एक शर्त रखता है. वह राजा से एक सवाल पूछेगा. अगर राजा उसका जवाब जानते हुए भी नहीं देगा तो उसके सर के हजार टुकड़े जायेंगे. अगर राजा ठीक उत्तर देगा तो वेताल उड़कर फिर पेड़ से लटक जाएगा. अगर राजा प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाता तो वेताल राजा की कैद में ख़ुशी से आ जाएगा. यहाँ तक तो आप सबको पता होगा। ये कहानी हजारों साल पहले पंडित सोमदेव ने कथा सरित्सागर में लिखी थी. आधुनिक युग में विक्रम और वेताल का संवाद आज के प्रश्नों को ले कर हो सकता है। ये लेखमाला एक प्रयास है, कुछ ऐसे प्रश्न उठाने का जिनके उत्तर आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है, खासकर हमारे राजा विक्रमादित्य के लिए तो नहीं! सोमदेव के सरित्सागर में वेताल एक कहानी सुना कर प्रश्न पूछता है, और राजा उसका संक्षेप में उत्तर देता हैं.
हमारे इस स्तम्भ में वेताल कुछ घटनाओं के आधार पे एक प्रश्न पूछता है और हमारे राजा विक्रमादित्य उस प्रश्न का कभी संक्षेप में तो कभी विस्तार से, उत्तर देते हैं. चलिए आज इस स्तम्भ की पहली कहानी में देखें, वेताल कौनसा कठिन प्रश्न पूछता है? तो हमारे राजा विक्रमादित्य जब फिर एक बार वेताल को अपने कंधे पे टांग केँ तांत्रिक की गुफा की तरफ चल पड़े तो वेताल हंसने लगा और उसने राजा को एक प्रश्न पुछा. “ऐ राजन, आज २५ जनवरी है. सबको पता है की २६ जनवरी हमारा गणतंत्र दिवस है लेकिन ये बहुत कम लोगों को पता है की २५ जनवरी, पिछले ६ सालों से, राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब फरवरी और मार्च में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं , और चुनाव तो लोकतंत्र का उत्सव है. कुछ लोग कहते हैं की मतदान अनिवार्य होना चाहिए, जैसे २६ देशों में, इसको अनिवार्य घोषित किया भी है ! कुछ लोग कहते हैं, मतदान को अनिवार्य करना अलोकतांत्रिक होगा, जैसे की हमारे पूर्व चुनाव अधीक्षक ने कहा है! क्या मतदान अनिवार्य करना लोकतंत्र के खिलाफ है? अगर तू इस प्रश्न का उत्तर जानते हुए भी नहीं देगा तो तेरे सर के हजार टुकड़े हो जाएंगे।” राजा विक्रमादित्य मुस्कराये , एक लंबी सांस ली, और कहा, ” वेताल तूने प्रश्न तो बहुत अच्छा पुछा है, और इसका उत्तर भी दूंगा लेकिन एक कहानी सुनाकर.”
मेरा एक मंत्री बड़ा ही सदाचारी और भला था. उसका मानवता में बड़ा विश्वास था, और वह चाहता था की हमें कम से कम नियम बनाने चाहिए। उसके विचार से हमें मनुष्य की सद्सद्विवेकबुद्धि पर विश्वास कर के प्रेम से हर बात मनवानी चाहिए. मैंने उसे समझाया की नियम और दंड व्यवस्था आवश्यक है, क्यों की अगर मौका मिलेगा तो साधारण मनुष्य अपना कर्त्तव्य करने में चूक सकता है और चुकता है। अपनी बात सिद्ध करने के लिए मैंने शहर में घोषणा करा दी, की महाशिवरात्रि के एक दिन पहले रात के अँधेरे में हर नागरिक एक प्याला दूध नगर के हौद में डालेगा जिस से भगवान् शिव की मूर्ति का अभिषेक होगा। अगले दिन देखा को हौद में थोड़ा सा दूध लेकिन अधिकतर पानी था. अधिकतर लोगों ने सोचा, हर कोई दूध डालेगा, मैं एक प्याला पानी डालूँगा तो किसे पता चलेगा।
मतदान भी कुछ इसी प्रकार है. बहुत लोग सोचते हैं की इतनी बड़ी जनसँख्या वाले देश में, या राज्य में, मैं अगर मतदान नहीं करूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा. लेकिन हर कोई ऐसा सोचेगा तो फर्क पड़ेगा, इसलिए ये अनिवार्य करना सही है. हजारों वर्षों से इस धरती पे मानव जाती का वास है, और राज्य व्यवस्था राज तंत्र की रही है. राज तंत्र के विरोध में पिछले कई सौ वर्षों से लोकतंत्र का विकास हुआ है. राजतन्त्र उत्पीडनवादी माना गया, इसलिए लोकतंत्र में अधिकारों की व्यवस्था की गयी. तो आज लोगों को अधिकार के बारे में विशेष जागरूकता हैं, – मतदान का अधिकार, मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, अपने धर्म की उपासना और उसके प्रचार का अधिकार, और अनेक अधिकार।
लेकिन अधिकार प्रधान विचारधारा ये पाश्चात्य कल्पना है. भारतीय संस्कृति कर्त्तव्य प्रधान है। भगवान् कृष्ण ने गीता में जो कहा है, “कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन । मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि” आप को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म मत करो । कर्म फल की अपेक्षा से आप कभी कर्म मत करें, न ही आप की कभी कर्म न करने में प्रवृर्ति हो (आप की हमेशा कर्म करने में प्रवृर्ति हो) अगर हमने लोकतांत्रिक पद्धति का स्वेच्छा से चयन किया है, तो उसके नियमों का पालन करना हमारा कर्त्तव्य है. अगर कोई कहे की इस पवित्र कर्त्तव्य को न करना ये उसका मौलिक अधिकार है, तो ये मूर्खतापूर्ण कथन है, चाहे वह
कोई भी हो. ” वेताल राजा का उत्तर सुन के खुश हुआ, हंसा और बोला, राजा तू बहुत ज्ञानी है, और समझदार है. तूने उत्तर तो एकदम ठीक दिया, लेकिन तू बोला, इसलिए में चला, और उड़के फिर उस पेड़ पे लटक गया.